Monday 15 July 2019

श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2019

जन्माष्टमी 2019

देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती है, एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।

कब हुआ श्री कृष्ण का जन्म

जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्री कृष्ण का जन्म का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
जन्माष्टमी 2019 - 24 अगस्त
निशिथ पूजा– 00:01 से 00:45
पारण– 05:59 (24 अगस्त) सूर्योदय के पश्चात
रोहिणी समाप्त- सूर्योदय से पहले
अष्टमी तिथि आरंभ – 08:08 (23 अगस्त)
अष्टमी तिथि समाप्त – 08:31 (24 अगस्त)
कैसे करें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत, 10 जरूरी बातें

चौकी पर लाल कपड़ा बिछा लीजिए।

भगवान् कृष्ण की मूर्ति चौकी पर एक पात्र में रखिए।

अब दीपक जलाएं और साथ ही धूपबत्ती भी जला लीजिए।

भगवान् कृष्ण से प्रार्थना करें कि, 'हे भगवान् कृष्ण ! कृपया पधारिए और पूजा ग्रहण कीजिए।

श्री कृष्ण को पंचामृत से स्नान कराएं।

फिर गंगाजल से स्नान कराएं।

अब श्री कृष्ण को वस्त्र पहनाएं और श्रृंगार कीजिए।


भगवान् कृष्ण को दीप दिखाएं।

इसके बाद धूप दिखाएं।

अष्टगंध चन्दन या रोली का तिलक लगाएं और साथ ही अक्षत (चावल) भी तिलक पर लगाएं।
माखन मिश्री और अन्य भोग सामग्री अर्पण कीजिए और तुलसी का पत्ता विशेष रूप से अर्पण कीजिए. साथ ही पीने के लिए गंगाजल रखें।

अब श्री कृष्ण का इस प्रकार ध्यान कीजिए

श्री कृष्ण बच्चे के रूप में पीपल के पत्ते पर लेटे हैं।

उनके शरीर में अनंत ब्रह्माण्ड हैं और वे अंगूठा चूस रहे हैं।

इसके साथ ही श्री कृष्ण के नाम का अर्थ सहित बार बार चिंतन कीजिए।

कृष् का अर्थ है आकर्षित करना और का अर्थ है परमानंद या पूर्ण मोक्ष।

इस प्रकार कृष्ण का अर्थ है, वह जो परमानंद या पूर्ण मोक्ष की ओर आकर्षित करता है, वही कृष्ण है।

मैं उन श्री कृष्ण को प्रणाम करता/करती हूं। वे मुझे अपने चरणों में अनन्य भक्ति प्रदान करें।

विसर्जन के लिए हाथ में फूल और चावल लेकर चौकी पर छोड़ें और कहें : हे भगवान् कृष्ण! पूजा में पधारने के लिए धन्यवाद।

कृपया मेरी पूजा और जप ग्रहण कीजिए और पुनः अपने दिव्य धाम को पधारिए।

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